श्री महाकालेश्वर मंदिर गौशाला - गोबर और गंदगी पर श्री महाकालेश्वर का गोधन, कर्मचारी की नजर में गोशाला की ड्यूटी सजा-ए-काला पानी

उज्जैन । विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का हर विभाग मक्कारी के नए आयाम को छूने के लिए तैयार बैठा है। हालात यह है कि जुबान वालों से तो बेईमानी ठीक है पर बाबा श्री महाकालेश्वर का प्रिय धन बेजुबान गोधन को सहेज कर रखने वाली गौशाला भी अब बेईमानों से दूषित नजर आ रही है। गायों की हालत बता रही है कि ढोल पूरे शहर में जोर से पीटा जा रहा है पर परिणाम कालूराम फूटे ढोल वाला सामने आ रहा है। जब हमने प्रत्यक्ष रूप से इसका दौरा किया तो देखकर हतप्रभ रह गये कि बाबा के गोधन की सेवा है या फिर बला टलाई।
दोपहर 3:00 बजे तक गोबर और गंदगी पर बैठा श्री महाकालेश्वर बाबा का गोधन
दोपहर 3 बजे तक गौमाता को गोबर एवं मुत्र की गंदगी में भी बैठना पड़ा, उनका चारा भी उसी गंदगी में पड़ा रहा और उसमें कीड़े भी थे निश्चित तौर पर गायों की सेहत पर विपरित प्रभाव पड़ेगा।


श्री महाकालेश्वर मंदिर के नाम से जहां एक और वेद विद्या प्रतिष्ठान चल रहा है वही उससे ही थोड़ी आगे चिंतामण से बमुश्किल 2 मिनट सीधे हाथ पर ही श्री महाकालेश्वर मंदिर द्वारा संचालित गौशाला भी है। जब हमारी टीम ने दोपहर 3:00 से 4:00 के बीच सूचना मिलने पर इस गौशाला का दौरा किया तो पाया कि गाय के बैठने के लिए सुखी जगह का आभाव है। गायों के हालात खुद बता रहे हैं कि उन्हें खाना सही नहीं दिया जा रहा है या सिर्फ कागजों पर गाय का पेट भरा जा रहा है। जिस गौशाला में 6 कर्मचारी हो और दोपहर 3:00 बजे तक गाय गोबर और मूत्र पर खड़ी रहे उस गौशाला के हालात आप स्वयं समझ सकते हैं कि प्रशासन इन गाय माताओं का कितना ध्यान रखता है। एक तरफ तो हम कोरोना वायरस को भगाने के लिए बाबा श्री महाकालेश्वर के मंदिर में अनुष्ठान करते हैं वहीं दूसरी ओर बेचारी एक गाय स्वयं अपना अनुष्ठान नहीं कर पा रही हैं क्या इसी अवस्था में आप मानते है?
गौशाला के कंडे से भस्म और दूध का उपयोग बाबा के पूजन में होता है
श्री महाकालेश्वर मंदिर समिति ने गौशाला खोल रखी है इसका पूरा खर्चा श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति उठाती है। एक तरफ यह कार्य सुनने में तो प्रशंसनीय है पर आप जैसे ही गौशाला जाएंगे तो आपको पता पड़ जाएगा कि श्री महाकालेश्वर मंदिर का कर्मचारी यदि बाबा श्री महाकालेश्वर प्रत्यक्ष आए तो ही बाबा से डर सकता है, अन्यथा सबको घोट के पी जाता है। गौशाला से प्राप्त गोबर के कंडों से बाबा श्री महाकालेश्वर की भस्म तैयार की जाती है जो महानिर्वाणी अखाड़े के महंत गणेशपुरी द्वारा की जाती है। गाय के दूध का उपयोग बाबा के अभिषेक पूजन में कार्य आता है साथ ही बाबा को लगने वाले भोग में भी दूध के पदार्थों का उपयोग होता है वह इस गौशाला से ही प्राप्त होता है। कहीं ना कहीं देखा जाए तो यह गौशाला भी बाबा श्री महाकालेश्वर को अति प्रिय है क्योंकि बाबा के नित्य पूजन और भोग का लगभग अधिकांशत: कार्य ही से पूरा हो जाता है।
दर्शन व्यवस्था, लड्डू के लिए तिरुपति की व्यवस्था और शुल्क देखने गई कमेटी वहां की गाय देखना क्यों भूल गई?



श्री महाकालेश्वर मंदिर कर्मचारियों की तरह तंदुरुस्त तिरुपति बालाजी की पुंगनूर गाय देखकर शायद मंदिर समिति में अक्ल आ जाए।
अभी हाल ही में 6 माह पूर्व श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति से 6 से 8 सदस्य कमेटी इसका पूरा खर्च श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की तरफ से उठाया गया। उसमें मंदिर समिति के गैर-सरकारी सदस्य कर्मचारी, मंदिर प्रशासक और इनकी सुरक्षा में हमेशा से तैनात लेडी सिंघम रूबी यादव तिरुपति की व्यवस्था देखने गए थे। वहां उन्होंने दर्शन व्यवस्था देखी ग्राउंड पर क्या उतरी आपके सामने लड्डू व्यवस्था देखी, तुलनात्मक रूप से वह भी आपके सामने हैं और शुल्क के रूप में भी आपके सामने। पर यह कमेटी शायद तिरुपति बालाजी की गौशाला में पाली जाने वाली पुंगनूर नस्ल की गाय देखना भूल गई क्योंकि कमेटी को मालूम था कि वह क्या करने गए हैं। इसलिए वह गौशाला का रास्ता भूल गए इतने बड़े-बड़े विद्वान लोग उस मंदिर की व्यवस्था देखने गए थे तो जरूर उनके ध्यान में हिंदुस्तान की चर्चित नस्ल वाली गौशाला की गाय ध्यान में क्यों नही।
श्री महाकालेश्वर मंदिर द्वारा संचालित गौशाला को कालापानी कहते हैं कर्मचारी
श्री महाकालेश्वर मंदिर द्वारा संचालित चिंतामणि स्थित गौशाला के संबंध में जब हमने मंदिर के कर्मचारियों से बात करी तो हमें पता पड़ा कि इसे जिस तरह अंग्रेजों के समान अंडमान निकोबार की सेल्यूलर जेल कालापानी को कहा जाता है वैसे ही मंदिर में कर्मचारियों को दंडित करने के लिए उसका गौशाला ट्रांसफर कर दिया जाता है। तो उसका अर्थ यह निकाला जाता है कि इसे अधिकारी ने काला पानी की सजा दी है। ऐसा क्यों यह समझ से परे है कोई भूतिया स्थान पर यह गौशाला नहीं है, कर्मचारी हैं, गौमाता है, आवागमन चालू है। हां इतना जरूर है कि यहां पर रुपए कि वह मोटी कमाई नहीं है जो कर्मचारियों को लग रही है। इसीलिए इसे मंदिर कर्मचारी कालापानी कहते हैं। क्योंकि पुराने लोगों की कहावत है कि गोबर का यार मेला हो जाता है और गोवर्धन की सेवा में इतना तो करना ही पड़ेगा। आखिर शासन भी तनख्वा दे रहा है उसके बाद भी कर्मचारी कि मक्कारिया समझ से परे है।
6 सफाई कर्मचारी एक चौकीदार एक दूध निकालने वाला, 100 गाय, 30 केड़े  कर्मचारी की संख्या बढ़ाना चाहिए
श्री महाकालेश्वर मंदिर की गौशाला में 6 सफाई कर्मचारी कार्यरत हैं उनमें से पांच मंदिर समिति की ओर से और एक कृष्णा कंपनी की ओर से एक चौकीदार। दूध निकालने वाला भी मंदिर समिति की ओर से नियुक्त किया गया है। गाय और  कैड़े के हिसाब से कर्मचारियों की संख्या कम है यह 6 कर्मचारी 2 शिफ्टों में आते हैं। प्रशासन या तो गौशाला को बंद करें या कर्मचारी बढ़ाएं अन्यथा गोधन बीमार परेशान दुखी होगा तो वह बस दुआएं ही देगा।
गौशाला कर्मचारियों को नहीं मालूम डॉक्टर कब आता है, जबकि आदेश हर सप्ताह डॉक्टरी जांच का है
यहां सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस गौशाला को चलते हुए इतने दिन हो गए वहां के कर्मचारियों को यही नहीं मालूम है कि गौशाला में डॉक्टर आखरी बार कब आया था और कब कब आता है। यह कर्मचारी जो ऊपर दर्शाएं हैं यह सिर्फ गाय को चारा पानी और साफ सफाई देखते हैं इन्हे नहीं मालूम कि डॉक्टर कब कब आता है। जबकि श्री महाकालेश्वर मंदिर समिति का आदेश है कि पशुओं की 'हर सप्ताह डॉक्टरी जांच होना चाहिएÓ आखिर मंदिर समिति इसका पालन क्यों नहीं कर पा रही है? यह समझ से बाहर है। क्यों गोधन को त्रास दीया जा रहा है? क्या विश्व का इतना बड़ा मंदिर और धन कमाने में भी अव्वल सोगाय माताओं को नहीं पाल सकता?
जब हमने इस संबंध में मंदिर गौशाला प्रभारी निरंजन जोनवाल से बात कि तो उन्होंने बताया कि पूर्व में यहां पर कार्य करने वाला गोपाल कुशवाहा मंदिर के वाहन विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया है तथा जोनवाल को गौशाला में भेज दिया गया है जबकि कुशवाहा लिख कर दे चुके हैं कि उन्हें वाहन संबंधित कोई जानकारी नहीं है उन्हें वापस गौशाला भेजा जाए पर दोनों श्री महाकालेश्वर  मंदिर की स्थापना शाखा में बैठे रहते हैं। क्या करते हैं यह दो ही जाने। उसने पर बताते हैं कि उन्हें मंदिर के ही काम इतने हो जाते हैं कि गौशाला जाना नहीं हो पाता है अब आप ही बताएं जिस व्यक्ति की ड्यूटी गौशाला में है वह मंदिर से गाय का नियंत्रण किस विधि से कर रहा है समझ से परे है और मंदिर के प्रशासक सहायक प्रशासक जानते हुए भी मंदिर में दिखने पर भी इनसे यह प्रश्न नहीं पूछते हैं कि आखिर इनकी ड्यूटी कहां है और यह आनंद कहां ले रहे।