अग्नि साक्षी उज्जैन। विगत 3 दिन पूर्व 78 दिन के लॉक डाउन के पश्चात बाबा महाकाल का दरबार फिर आम जनता के दर्शन हेतु कुछ नए नियमों के साथ खोल दिया गया। श्री महाकालेश्वर मंदिर का ऐप और टोल फ्री नंबर अब बाबा के दर्शन के लिए अति आवश्यक हो गया है इससे परमिशन प्राप्त किए बिना आप बाबा के दर्शन नहीं कर सकते है।ं यह नियम आमजन के लिए है जिन्हें दर्शन के 1 दिन पूर्व इन दोनों विकल्पों में से एक विकल्प को चुन कर अनुमति लेना होती है। उसके पश्चात वह दर्शन करने का पात्र हो जाता है यह देखा जा रहा है कि बुकिंग लगातार 2200 से 2800 से अधिक जा रही है पर चौथाई बुकिंग करने वाले लोग दर्शन करने नहीं आ पा रहे हैं। इसके कारण मंदिर द्वारा निर्धारित 2800 से 3000 के आंकड़े को छू कर इसे बंद कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में जो लोग दर्शन करना चाहते हैं वह बेचारे दर्शन नहीं कर पाते। अच्छा हो ऑनलाइन बुकिंग के अलावा करंट काउंटर भी मंदिर में चालू हो जिसने दर्शन करने वाले भक्तों को परमिशन के अनुमति हो ताकि दर्शन करने वाली संख्या को पूर्ण किया जा सके संभवत: शाम के समय और दोपहर के समय भीड़ का क्रम कम होता है उस स्थिति में प्रशासन विचार के कोई विकल्प निकाल सकता है।
केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार 65 वर्ष से अधिक और 5 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को घर पर ही रखा जाए क्योंकि यह कोरोन ावायरस के सबसे प्रिय वाहक हैं ऐसी स्थिति में शासकीय और भीड़ भरे सार्वजनिक स्थानों पर इन लोगों का प्रवेश रोकने को कहा गया है, पर महाकाल मंदिर में उल्टा है जहां दर्शन हेतु परमिशन कराने वाले व्यक्ति की उम्र यदि 65 साल से अधिक हो तो उसको मना कर दिया जा रहा है चाहे वह फिट तंदुरुस्त और चपल ही क्यों न हों, वहीं दूसरी ओर समर्थवान पंडित-पुजारी जिनकी उम्र 70 से भी ऊपर हो गई है क्या उन्हें नाबालिक समझकर मंदिर में आरती और पटिया पर बैठने जैसी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन करना पड़ रहा है। आखिर क्यों पुजारी परिवार में लगभग नो पुजारी वृद्ध अवस्था के हैं और जिनकी उम्र लगभग 65 वर्ष से अधिक है। इसी स्थिति में इन लोगों को आने की अनुमति क्यों है? क्यों एक आम आदमी के लिए कानून और नियम बनाकर उसे गेट से ही वापस लौटा दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर इन 72 साल के बच्चों के हाथ में मंदिर का प्रभार दे दिया गया है? यह विचारणीय है फिर ऐसी परिस्थिति में लोग कहते हैं समरथ को नहिं दोष गुसाईं। मंदिर में घनश्याम पुजारी, महेश पुजारी, कैलाश पुजारी, महेश उस्ताद पुजारी, चंद्रमोहन पुजारी, ओम गुरु पुजारी, प्रमोद गुरु पुजारी, इंद्र नारायण उर्फ इंदौरी गुरु पुजारी, विजय गुरु पुजारी, शरद गुरु पुजारी इन सभी की उम्र 65 वर्ष से अधिक है फिर भी यह सभी गुरु बराबर मंदिर में उपस्थित रहते हैं भस्मा आरती से लेकर शाम तक जब भी इनकी पाली आती है इन्हें सब माफी मिली है। यह सभी कोरोना वायरस से रक्षित त्वचा लेकर मंदिर में आते हैं ऐसी स्थिति में यह किसी दूसरे की जान को आफत में डाल सकते हैं जबकि सब के परिवार में जवान सदस्य उपलब्ध हैं लेकिन उसके बाद भी माया का मोह इन लोगों को मंदिर में बुला लेता है। ज्ञात हो कि इनमें से कुछ अधिक उम्र के पुजारी मंदिर नहीं आ रहे हैं पर फिर भी इन 10 नामों में से 7 नाम तो निश्चित मंदिर में दिख जाते हैं ऐसी स्थिति में प्रशासन और केंद्र का आदेश क्या विशेष लोगों को छोडक़र जारी हुआ है।
सुना पड़ा बाबा महाकाल मंदिर का अभिषेक स्थल
कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने मंदिर भले ही खोलने की गाइडलाइन जारी कर दी हो पर भौतिक दूरी काफी दिनों तक बनाए रखना होगी। जब तक कोरोना वायरस से शहर में पूर्ण रूप से मुक्ति के पश्चात भी 14 दिन और शांति का उपभोग न कर ले। भंवरी गई जिस तरह से शहर में घूम रही है उस हिसाब से तो दो चार माह तक यह सब संभव नहीं है हां यदि बाबा महाकाल चाहे तो सब कुछ संभव हो सकता है पर इसकी संभावना कम है क्योंकि बाबा महाकाल भी इस बार ठान के बैठे हैं कि मैं भी देखूं तू कितनी परीक्षा दे सकता है। महाकाल मंदिर में अमूमन पंडो पुजारियों से भरा रहने वाला अभिषेक स्थल आज सुनसान पड़ा हुआ है।
लॉक डाउन अवधि में लाख दावों के बावजूद प्रमुख मंदिरों की दुर्दशा निश्चित हुई
लॉक डाउन अवधि में मंदिर 78 दिन तक पूर्ण रूप से बंद था उस समय प्रशासक सुजान सिंह रावत ने मंदिर समिति के साथ मिलकर संयुक्त रूप से यह आदेश दिए थे कि सभी मंदिरों की पूजा पाठ नियमित रूप से अंदर होगी पर जिस दिन बाबा का दरबार खुला उस दिन यह प्रत्यक्ष रूप से देखा और पाया गया कि शनिवार से चढ़ा हुआ शनि मंदिर का चोला सोमवार की शाम तक वैसा ही था। शायद शनिवार के बाद उस मूर्ति पर जल भी नहीं चड़ा हो। संभवत: मंगलवार के दिन कुछ यात्रियों ने वहां जल चढ़ाया महाकाल मंदिर का प्रमुख मंदिर कोटेश्वर महादेव जहां शिव नवरात्रि पर 9 दिन हल्दी लगती है और उन्हें बाबा महाकाल का मुंशी कहा जाता है, शनि महाप्रदोष पर पहली पूजा इसी मूर्ति की होती है पर मूर्ति की दशा बता रही थी कि शायद 78 दिन में यहां पर कभी पंचामृत अभिषेक हुआ हो या बाबा के ऊपर जल प्रवाहित करने वाली घघरी को भरा गया हो। ज्ञात हो कि जब गर्भ गृह में प्रवेश बंद होता है तब सभी पुंडे पुजारी इसी मंदिर में लाकर जजमान को अभिषेक कराते हैं वही इस मूर्ति के महत्व को स्पष्ट करता है, लेकिन चाहे भगवान हो या गाय कलयुग का आदमी उसी को घर पर बांधता है जो दूध दे अर्थात नगदी दे। यदि ऐसा नहीं होता तो कम से कम उज्जैन को 79 दिन का लाग डाउन नहीं खोलना पड़ता पर क्योंकि प्रकृति इस बार अपना पूर्ण रंग दिखा रही है और भगवान भी ध्यान मग्न हो गए हैं इसलिए अब सच और झूठ का पता लॉक डाउन खुलने के बाद चल रहा है। लोग कह रहे हैं भगत के बस में है भगवान, भक्त बिना ये कुछ भी नहीं है। भक्त है इसकी जान वास्तविकता है इस भक्त 79 दिन दूर रहा तो भगवान भी 79 दिन ध्यान में भी रो ही रहा होगा।
महेश पुजारी भी 72 वर्ष के हैं, 20 दिन क्वॉरेंटाइन भी रहे हैं फिर भी बीमारों से घृणा समझ से परे...
कल हमने महाकाल मंदिर के योद्धा 72 वर्षीय बाल कलाकार महेश पुजारी जी के संबंध में समाचार प्रकाशित किया था ऐसा लगता है कि कलेक्टर और केंद्र के नियमों का उल्लंघन करने की उन्होंने कसम से खा ली है। कोरोना संक्रमण काल तीसरे लॉक डाउन के समय जिस मकान में वह रह रहे हैं उसके नीचे वाले मकान में एक फल विक्रेता को कोरोना पॉजिटिव पाया गया था उस समय भी उन्होंने प्रशासन से बेतुकी मांग की थी कि उन्हें रोज मंदिर लाया और छोड़ा जाए। जिस व्यक्ति को पॉजिटिव पाया गया है उसके घर को ही क्वॉरेंटाइन किया जाए तथा उन्हें मंदिर आने-जाने की अनुमति दी जाए। तब भी हमने समाचार प्रकाशित किया था कि ‘‘प्रशासन पुजारी को संभाले या शहर को’’ क्वॉरेंटाइन पीरियड खत्म होने के पश्चात भी इस अनोखे योद्धा ने प्रशासन को प्रेस के माध्यम से बताया कि कोरोना पॉजिटिव मरीज को गुरूद्वारे और मंदिरों में जगह बना के रख देना चाहिए। उनके कारण क्षेत्र को क्वॉरेंटाइन किया जाना गलत है। अब यहां यह समझ से परे है कि महान विद्वान महेश पुजारी जी बीमारी से घृणा करते हैं या बीमार से? उनके कार्यकलापों से प्रतीत होता है कि वह ऐसे मनुष्यों से घृणा करते हैं जो पैसा रहित हो उनकी अकूत संपत्ति बताती है कि अर्जन का आधार क्या रहा है उसके बाद भी उसी आदमी से घृणा समझ से परे है कभी वह अन्य क्षेत्र बंद कराने की बात कहते हैं तो कभी बीमारों को शहर से दूर गुरूद्वारे और मंदिरों में क्वॉरेंटाइन करने की उनकी सोच ही उनके व्यक्तित्व का दर्शन कराती है।
खुलेआम कलेक्टर के आदेश की धज्जियां उड़ाने वाले महेश पुजारी पर कार्यवाही करने से क्यों डर रहा है मंदिर प्रशासन
कल के अंक में हमने प्रकाशित किया था कि मंदिर के उम्र दराज 72 वर्ष के लगभग उम्र वाले महेश पुजारी मंदिर खुलने के बाद भी गर्भ गृह से नंदीहाल तक मुंह पर मास्क लगाए बिना शासन के उस आदेश की धज्जियां उड़ा रहे हैं जो मंदिर में प्रवेश के लिए अति आवश्यक किए गए हैं अति आवश्यक आदेश में से चेहरे पर मास्क लगाना और स्वयं को सैनिटाइज करना सोशल डिस्टेंस प्रमुख बिंदु है। इन तीनों का ही उल्लंघन खुल्लम-खुल्ला लाइव महाकाल दर्शन पर हुआ। मंदिर प्रशासक को भी इसकी सूचना दी गई अन्य मामलों में संज्ञान लेने वाला मंदिर प्रशासन आखिर क्यों चुप है? हमेशा से भस्म आरती के ब्लैकमेलरों को पकडक़र पुजारियों को क्षमा करने वाला प्रशासन क्या यहां भी न्याय कर पाएगा इसमें संदेह है। यदि कोई दूसरा पंडित या कर्मचारी होता तो अभी तक प्रशासक महोदय उसको दंडित कर दिए होते।
रुद्राक्ष संगठन नीलगंगा सीएम हेल्पलाइन 181 पर इस लापरवाही की करेगा शिकायत
सामाजिक कार्यकर्ता धर्म जागरण समिति के मोहित राणा ने समाचार पढऩे के बाद हमारे प्रतिनिधि को बताया कि मंदिर प्रशासन द्वारा यदि कार्यवाही नहीं की गई तो कलेक्टर महोदय और मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 181 पर इस कारगुजारी की शिकायत की जाएगी कि एक और शासन प्रशासन के अधिकारी, डॉक्टर, कंपाउंडर, पुलिस वाले इस बीमारी से लड़ कर मर रहे हैं और लोगों की जान बचा रहे हैं वही मंदिर के सम्मानित लोग यदि इस तरह का आचरण करेंगे तो जनता को गलत संदेश जाएगा। कल से जनता भी मंदिर में बिना मास्क लगाए आएगी तो स्थिति विचित्र हो जाएगी या तो सभी लोगों को मास्क रहित घूमने की अनुमति दी जाए अन्यथा उक्त पुजारी पर भी कार्रवाई होना चाहिए।