उज्जैन। करीब 80 दिन से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उज्जैन रेड जोन में है और कोरोनावायरस से मुक्ति नहीं पा सका है। जिला प्रशासन और स्वास्थ विभाग की टीम लगातार काेराेना से मुक्ति के लिए प्रयास कर रहा है। काेराेना से मुक्ति के लिए प्रशासन अब भगवान से प्रार्थना कर रहा है। इसी कड़ी में शनिवार काे उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह चौबीस खंबा माता मंदिर पहुंचे और पूजन के बाद मां काे मदिरा का भाेग लगाकर नगर पूजा की शुरुआत की। उन्होंने मां से उज्जैन शहर को महामारी से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। खास बात यह है इस मंदिर में नवरात्रि की अष्टमी पर मदिरा चढ़ाने की परंपरा सालाें से चली आ रही है, इस साल लाॅकडाउन के कारण इस परंपरा का निर्वहन नहीं हो पाया था।
ऐसे करते हैं पूजन की शुरुआत
परंपरा के अनुसार महामारी से बचने के लिए राजा विक्रमादित्य शहर स्थित चौबीस खंबा माता मंदिर पर मदिरा चढ़ाकर पूजन अभिषेक करते थे। नगर पूजा की यह परंपरा उसी समय से चली आ रही है। इस बार लॉकडाउन के कारण यह पूजन नहीं हो पाई थी। इसलिए शनिवार को कलेक्टर आशीष सिंह, एसपी मनोज सिंह मां के दर पर पहुंचे। सैकड़ों भक्तों की मौजूदगी में ढोल-ढमाकों के साथ गुदरी स्थित चौबीस खंभा माता मंदिर से नगर पूजा की शुरुआत हुई। कलेक्टर ने मदिरा की धार चढ़ाकर पूजा शुरू की। यह पूजा माता, भैरव व हनुमान मंदिर मिलाकर कुल 40 मंदिरों में हुई। 26 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद संपन्न होने वाली इस पूजा में 5 किलो सिंदूर, दो डिब्बे तेल, 25 बोतल मदिरा सहित 39 प्रकार की विशेष पूजन सामग्री रखी जाती है।
1000 साल पुराने मंदिर में ऐसे शुरू होती है पूजा
नवरात्रि में महाअष्टमी पर जहां घरों में माता के भक्त कुलदेवी का पूजन करते हैं, वहीं उज्जैन प्रशासन द्वारा महाअष्टमी के महापर्व पर नगर पूजा का आयोजन किया जाता है। खुद उज्जैन कलेक्टर प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में महाअष्टमी के दिन सुबह गुदरी चौराहा स्थित चौबीस खंभा माता मंदिर में मदिरा की धार चढ़ाकर नगर पूजन की शुरुआत करते हैं। इसके बाद महाअष्टमी पर शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर पर दोपहर 12 बजे शासकीय पूजा होती है। यह नगर पूजा अंकपात मार्ग स्थित हांडी फोड़ भैरव मंदिर पर रात 8 बजे समाप्त होती है। हालांकि इस बार यह पूजा नवरात्रि पर नहीं होने से शनिवार को संपन्न हुई।
मां से देश के कल्याण के लिए प्रार्थना की
कलेक्टर आशीष सिंह ने कहा कि उज्जैन में गौरवशाली परंपरा है। राजा विक्रमादित्य के समय से यह परंपरा चली आ रही है। इसका मुख्य उद्देश्य केवल नगर के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के कल्याण के लिए प्रार्थना करना होता है। उसी परंपरा का पालन करते हुए मेरे द्वारा यह पूजा की गई। कोरोनावायरस का जो दौर चल रहा है, उज्जैन हो या प्रदेश या पूरा देश उससे जल्दी मुक्ति मिले। इसी कामनाओं के साथ यह पूजा की गई है। परंपरा के अनुसार पहले मंदिर में कलेक्टर के द्वारा पूजा की जाती है और अंतिम मंदिर में बाकी बीच मंदिर में तहसीलदार और पटवारी द्वारा पूजा का प्रावधान है। पूजा का जो उद्देश्य था, कोरोना को भगाने में सफल होंगे।
इसलिए चढ़ती है शराब
महाकाल वन के मुख्य प्रवेश द्वार पर विराजित माता महामाया व माता महालाया चौबीस खंभा माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां पर मंदिर के भीतर 24 काले पत्थरों के खंभे हैं, इसीलिए इसे 24 खंभा माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह उज्जैन नगर में प्रवेश करने का प्राचीन द्वार हुआ करता था। पहले इसके आसपास परकोटा हुआ करता था। तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध उज्जैन या प्राचीन अवंतिका के चारों द्वार पर भैरव तथा देवी विराजित हैं, जो आपदा-विपदा से नगर की रक्षा करते हैं। चौबीस खंभा माता भी उनमें से एक हैं। यह मंदिर करीब 1000 साल पुराना है। नगर की सीमाओं पर स्थित इन देवी मंदिरों में राजा विक्रमादित्य के समय से नगर की सुरक्षा के लिए पूजन और मदिरा चढ़ाए जाने की परंपरा चली आ रही है।