डॉ. भीमराव अंबेडकर महिलाओं की उन्नति के प्रबल पक्षधर थे। डा. अंबेडकर के व्यक्तित्व पर गौतम बुद्ध की शिक्षाओं तथा महात्मा जोतिराव फुले के सामाजिक कार्यो का बहुत गहरा प्रभाव था। बुद्ध ने समानता का उपदेश दिया और उसका पालन किया। बुद्ध धम्म मानव इतिहास में ऐसा प्रथम धर्म था जिसने महिलाओं को धर्म दीक्षा का अधिकार दिया। स्त्री-पुरूष समानता का उपदेश दिया। महात्मा फुले ने 19वीं शताब्दी में महिलाओं की शिक्षा के लिए एतिहासिक कार्य किया था। डॉ. अंबेडकर महात्मा फुले को अपना गुरू मानते थे।
डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि किसी भी समाज का मूल्यांकन इस बात से किया जाता है कि उस समाज में महिलाओं की क्या स्थिति है? कालांतर में महिलाओं की स्थिति दयनीय होती गई और उनके लिए शिक्षा के द्वार लगभग बंद कर दिए गए। आजाद भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में डा. अंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए। महिलाओं को और अधिक अधिकार देने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए सन 1951 में उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया। डा. अंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। डा. अंबेडकर का दृढ विश्वास था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में सामाजिक बराबरी का दर्जा मिलेगा।
अखिल भारतीय दलित वर्ग महिला सम्मेलन के दूसरे सत्र में बाबासाहेब ने कहा था कि महिलाओं के संगठन में मेरा अत्यधिक विश्वास है। मैं जानता हूं कि यदि वे आश्वस्त हो जाएं तो समाज को सुधारने के लिए क्या नहीं कर सकती हैं? उन्होंने कहा कि मैं स्त्रियों के उत्थान और मुक्ति का सबसे बड़ा समर्थक रहा हूं और अपने समुदाय में स्त्रियों की स्थिति सुधारने का मैंने भरसक प्रयास किया है और मुझे इस पर गर्व है। बाबा साहेब अंबेडकर प्रायः कहा करते थे कि मैं ‘हिन्दू कोड’ बिल पास कराकर भारत की समस्त नारी जाति का कल्याण करना चाहता हूं। मैंने हिन्दू कोड पर विचार होने वाले दिनों में पतियों द्वारा परित्यक्तता अनेक युवतियों और प्रौढ महिलाओं को देखा जिन्हें पतियों ने त्यागकर उनके जीवन- निर्वाह के लिए नाम मात्र का चार-पांच रूपया मासिक गुजारा बांधा हुआ था। उनके अभिभावक भी अपने पुत्रियों की इस स्थिति से दुखी रहते थे। हिन्दू कोड के पास हो जाने पर ऐसी दुःखित और निरीह महिलायें कानून के बलबूते पर ऐसे अत्याचारी पतियों से पिण्ड छुड़ाकर तलाक हासिल कर सकती थीं और जीवन-यापन के लिए दूसरा विवाह भी कर सकती थीं। ‘हिन्दू कोड’ की प्रबल विशेषता यह भी थी कि किन्हीं भी दो हिन्दू वर-वधुओं का विवाह चाहे उनका परस्पर वर्ण भेद या जाति भेद कैसा व कितना भी क्यों न हो वैध माना जाता है और उनसे उत्पन्न सन्तान पैतृक सम्पत्ति में वैध अधिकारी बन जाती है। जबकि इस कानून से पहले समय में शताब्दियों से प्रचलित परस्पर विरोधी वर्णों, जातियों उपजातियों में हुए विवाह में से उत्पन्न सन्तान पैतृक सम्पत्ति में अंश या हिस्सा प्राप्त करने के लिए वैध या जायज सन्तान नहीं मानी जाती थी। सदियों से प्रचलित रूढ़ियों के अनुसार दत्तक या गोद लेने की प्रथा केवल सजातीय या दोहता को ही सुविधा देती थी किन्तु हिन्दू कोड न केवल किसी भी हिन्दू बालक को दत्तक या गोद लेने का अधिकार दिलवाता था बल्कि किसी कन्या को भी गोद लिया जा सकता है और वह गोद लेने वाले माता पिता की सम्पत्ति में अधिकार प्राप्त करती है।
कुछ कारणों की वजह से हिन्दू कोड बिल उस समय संसद में पारित नहीं हो सका, लेकिन बाद में हिन्दू कोड बिल अलग अलग भागों में जैसे हिन्दू विवाह कानून, हिन्दू उत्तराधिकार कानून और हिन्दू गुजारा एवं गोद लेने संबंधी कानून के रूप में अलग-अलग नामों से पारित हुआ जिसमें महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार दिए गए। ये हर भारतीय के लिए गौरव की बात है कि अब संयुक्त हिन्दू परिवार में पुत्री को भी पुत्र के समान बराबर का भागीदार माना जाता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पुत्री विवाहित है या अविवाहित। हर लड़की को लड़के के ही समान सारे अधिकार प्राप्त हैं। संयुक्त परिवार की संपत्ति का विभाजन होने पर पुत्री को भी पुत्र के समान बराबर का हिस्सा मिलेगा चाहे वो कहीं भी हो। इस तरह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में डा. अंबेडकर ने बहुत सराहनीय काम किया। आज जब महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में विचाराधीन है, महिला सशक्तिकरण पर डॉ. अंबेडकर के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। महिला सशक्तिकरण आन्दोलन पर जब कभी कोई साहित्य लिखा जाएगा, डा. अंबेडकर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा.