शीतला सप्तमी व्रत आज है और कुछ लोग शीतला अष्टमी कल मनाएंगे। ये हिन्दुओं का खास त्योहार है। जिसमें शीतला माता का व्रत और पूजा की जाती है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण में किया गया है। ये व्रत होली के बाद किया जाता है। वैसे तो शीतला माता की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से शुरू होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पडऩे वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन ही की जाती है। इस व्रत पर एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है अत: इस व्रत को बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। शीतला को चेचक नाम से भी जाना जाता है। शीतला माता की पूजा और ये व्रत करने से चेचक एवं अन्य तरह की बीमारियां नहीं होती है।
शीतला सप्तमी या अष्टमी व्रत कैसे करें
व्रत करने वाले सुबह जल्दी उठकर नहा लें। इसके बाद हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प कर लें।
संकल्प करने के बाद विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से शीतला माता की पूजा करें।
इसके पश्चात एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) चीजों जैसे मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं।
इसके बाद शीतला स्तोत्र का पाठ करें और यदि यह उपलब्ध न हो तो शीतला माता व्रत की कथा सुनें। फिर रात में जगराता करें और दीपक लगाएं।
शीतला माता व्रत की कथा
किसी गांव में एक महिला रहती थी। वह शीतला माता की भक्त थी तथा शीतला माता का व्रत करती थी। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में किसी कारण से आग लग गई। उस आग में गांव की सभी झोपडिय़ां जल गई, लेकिन उस औरत की झोपड़ी सही-सलामत रही। सब लोगों ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं माता शीतला की पूजा करती हूं। इसलिए मेरा घर आग से सुरक्षित है। यह सुनकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे।
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