नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत-पाकिस्तान और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर घुसपैठ रोकने के लिए बीएसएफ एक साथ कई मोर्चों पर काम कर रही है। मकसद है बॉर्डर को पूरी तरह सील करना। अभी तक बॉर्डर के अधिकांश हिस्से में जो कंटीली तार लगी है, उसे आसानी से काटा जा सकता है। कई जगह पर यह देखा गया है कि घुसपैठिये उस तार को काट कर भारतीय सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। लेकिन अब जो बाड़ या तार लगाई जा रही है, उसे काटना आसान नहीं है। खासतौर पर, कोई भी घुसपैठिया सामान्य औजारों की मदद से उस तार को नहीं काट सकता। एक किलोमीटर में इस बाड़ को लगाने का खर्च 3.50 करोड़ रुपये आ रहा है। बता दें कि अभी तक बॉर्डर के ज्यादातर हिस्से में जो कंटीली तार लगी है, उसे घुसपैठिये नुकसान पहुंचा देते हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ लगी सीमा पर ऐसी ही तार लगी है। दोनों ही देशों की सीमाओं पर अनेक घुसपैठिये पकड़े जाते हैं या मारे जाते हैं। बीएसएफ सूत्रों के अनुसार, अब बॉर्डर को पूरी तरह सील करने की योजना पर काम हो रहा है। अभी तक कई हिस्सों में वह तार लगाई जा रही है, जिसे काटना आसान नहीं है।
कम से कम एक-दो आदमी सामान्य औजारों की मदद से उसे नहीं काट सकते। वजह, इस तार से जो बाड़ तैयार की गई है, वह ऐसी है कि जिस पर सामान्य औजार काम नहीं करेगा। तार के बीच जो अंतर रखा गया है, वह इतना कम है कि वहां तक औजार का जाना मुश्किल है। दूसरा तार की क्वालिटी इतनी मजबूत कर दी गई है कि चाह कर भी कोई घुसपैठिया उसे नहीं काट सकेगा।
पांच वर्ष में लगेगा सीआईबीएमएस
बॉर्डर पर घुसपैठ रोकने के लिए बाड़ लगाने के अलावा स्मार्ट फेंसिंग पर भी काम चल रहा है। इसके लिए इजरायली सिस्टम की मदद ली जा रही है। तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह खुद इजरायल जाकर इस सिस्टम की खूबियां जानकर आए थे। उसके बाद असम के धुबरी जिले में व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (सीआईबीएमएस) लगाने की शुरुआत की गई।
सीआईबीएमएस सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिकली क्यूआरटी इंटरसेप्शन टेक्नोलॉजी के जरिए बॉर्डर की सुरक्षा को पुख्ता बनाता है। यह सिस्टम उन जगहों पर लगता है, जहां बाड़ आदि लगाना संभव नहीं होता। बांग्लादेश के साथ लगती 4,096 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को सौंपी गई है। इस बॉर्डर पर कई इलाके ऐसे हैं, जहां भौगोलिक बाधाओं के कारण फेंसिंग (बाड़) लगाना संभव नहीं है। खासतौर पर असम के धुबड़ी जिले का वह 61 किलोमीटर लंबा सीमा क्षेत्र, जहां से ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रवेश करना आरंभ करती है। ब्रह्मपुत्र और उसकी कई सहायक नदियों का विषम परिक्षेत्र सीमा निगरानी को एक मुश्किल और चुनौती भरा कार्य बना देता है। विशेष रूप से बरसात के मौसम में बीएसएफ को घुसपैठ रोकने के लिए बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही पशु तस्कर और दूसरे घुसपैठिये भी बरसात का इंतजार करते रहते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए गृह मंत्रालय ने तीन साल पहले इस तकनीक की मदद लेने का फैसला लिया था। असम के अलावा जम्मू में भी इसका ट्रायल शुरू किया गया था। बीएसएफ के एक अधिकारी के अनुसार, यह सिस्टम ट्रायल में पास हो गया है। अब इसे बॉर्डर के दूसरे हिस्सों पर भी लगाया जाएगा। पहले यह योजना दस साल में पूरी होनी थी, लेकिन अब इसे लगाने की समयावधि घटाकर पांच साल कर दी गई है।
ऐसे काम करती है व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली
बॉर्डर इलेक्ट्रॉनिक क्यूआरटी इंटरसेप्शन टेक्नोलॉजी पर काम करने वाला सीआईबीएमएस सिस्टम सेंसर प्रणाली और कैमरों की मदद से सर्विलांस करता है। बीएसएफ को ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के जलीय क्षेत्र में भारत-बांग्लादेश की बिना बाड़ वाली सीमाओं की चौकसी करनी पड़ती है, इसलिए इस सिस्टम से खासी मदद मिलेगी। कैमरे और सेंसर प्रणाली हर मौसम में 24 घंटे काम करते हैं। जिस क्षेत्र में यह सिस्टम लगाया जाएगा, वहां पूरे क्षेत्र को डाटा नेटवर्क पर काम करने वाली संचार प्रणाली यानी ओएफसी केबल्स, डीएमआर कम्युनिकेशन, दिन और रात निगरानी करने वाले कैमरों और घुसपैठ का पता लगाने वाली प्रणाली से कवर किया जाता है। ये उपकरण बॉर्डर पर तैनात बीएसएफ जवानों को वहां की गतिविधियों से अवगत कराते रहते हैं।
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