नर्मदा क्षिप्रा लिंक जैसा हश्र न हो जाए नर्मदा कालिसिंध लिंक परियोजना का
44 वर्ष पुरानी परियोजना तो अधर में लटकी और नई योजना पर शुरू हो गया कार्य
देवास। जिले की वृहद कालिसिंध परियोजना को तो अधर में लटके हुए 44 वर्ष से अधिक समय हो गया है और कालिसिंध नदी पर नर्मदा कालिसिंध लिंक परियोजना का कार्य शुरू कर दिया गया। ऐसे में वही सवाल उठने लगे है जो नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना को लेकर अब उठाये जा रहे है क्योंकि इस परियोजना को लेकर दावा यह किया गया था कि लाखों हैक्टेयर भूमि सिंचित होगी, लेकिन स्थिति यह है कि क्षिप्रा नदी के आसपास ही किसानों को चोरी से पानी सिंचाई करना पड़ रही है तो कई बार उन्हें मोटर और पाईप जब्ती जैसी कार्यवाही का सामना करना पड़ता है। नर्मदा क्षिप्रा लिंक परियोजना को लेकर पीने का साफ पानी मिलने की बात तो दूर तीज-त्यौहारों पर क्षिप्रा व उज्जैन में नहाने का साफ पानी भी श्रद्धालुओं को नही मिल पा रहा है जिसको लेकर अब तक कई बार आवाजे भी उठाई जा चुकी है। क्षिप्रा नदी में उद्योगों का गंदा पानी मिलने को लेकर भी हालही में क्षेत्र के लोगों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए प्रदर्षन किया है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि क्षिप्रा जल आवर्धन योजना के तहत डेम निर्माण नही होता तो इस परियोजना का हश्र क्या होता यह समझा जा सकता है। क्षिप्रा जल आवर्धन योजना की वजह से ही नर्मदा का पानी क्षिप्रा में बड़ी मात्रा में रोका जा सका है जिससे देवास शहर व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की प्याव बुझ पा रही है वरना देवास शहर में जल संकट का कहर किस कदर मंडराता था यह किसी से छिपा नही है। यहां इस स्थिति को देखते हुए देवास जिले में ही नर्मदा कालिसिंध लिंक परियोजना को लेकर अभी से सवाल उठने लगे है। वह इसलिए कि 44 वर्ष पूर्व कालिसिंध वृहद परियोजना लेकर प्रक्रिया शुरू हुई थी और यह परियोजना मात्र 453.54 करोड़ रूपयें में ही पूर्ण हो रही थी, जिसकी प्रषासकीय स्वीकृति 04 अक्टुम्बर 2008 को ही प्राप्त हो गई थी, तब यह परियोजना मूर्त लेती तो आज भी इस क्षेत्र के हजारों किसानों को सिंचाई का लाभ लेते। पर्याप्त पानी होने से किसानों की हालत वह नही होती जो आज नजर आ रही है। कभी पानी की कमी व कभी प्राकृतिक आपदा झेलने वाले किसान सम्पन्न हो सकते थे। लेकिन राजनैतिक कारणों से यह परियोजना अधर में झुलती गई और फिर इस परियोजना में अडंगे लगाने के काम भी शुरू हो गया, लेकिन उस समय अडंगे डालने वाले एक सत्ताधारी नेता ने यह नही सोचा कि इससे कितने किसानों को फायदा पहुंचेगा। स्थिति यह हो गई कि 44 वर्ष पुरानी परियोजना तो अधर झुलती रही और नर्मदा कालिसिंध लिंक परियोजना को मंजूरी ही नही मिली बल्कि काम भी शुरू हो गया। अब यदि जिस तरह देवास के समीप क्षिप्रा जल आवर्धन योजना ने मूर्त रूप लिया था उसी तरह वृहद कालिसिंध परियोजना भी मूर्त रूप ले तो न सिर्फ पानी किल्लत दूर होगी बल्कि सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी भी 12 माह किसानों को उपलब्ध हो सकेगा। नर्मदा का पानी रोकने के लिए यदि कदम पहले उठाये जाते तो मालवा क्षेत्र के लिए अच्छा होता। बताया जाता है कि आने वाले 2 वर्षो में नर्मदा कालिसिंध लिंक परियोजना का कार्य पूर्ण करने का दावा किया जा रहा है। अब वे सवाल जो नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना को लेकर उठाये गये थे वे ही सवाल इस क्षेत्र में भी उठ खड़े हुए है। यहां यह उल्लेख है कि 29 नवम्बर 2012 को नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना की आधारषिला रखते हुए तत्कालिन मुख्यमंत्री षिवराजसिंह चैहान ने दावा किया था कि इस योजना से मालवा क्षेत्र में खेतों में सिंचाई होगी। उद्योगों व 70 शहरों सहित 3000 गांवों को पानी मिलेंगा। इसी आयोजन में भाजपा के वरिष्ठ लालकृष्ण आडवानी ने कहा था कि इस परियोजना के बाद मालवा के किसानों को पानी की कोई कमी नही रहेंगी, यह परियोजना मालवा का गौरव वापस लौटाएगी। जब कि आज हालात क्या है किसी से छिपे नही है।
देवास जिले से सोतेला व्यवहार क्यों?
सिंचाई और पीने के पानी जैसी अति महत्वपूर्ण परियोजनाएं वर्षो से अधर में लटकना और अन्य जिलों में एक के बाद एक विभिन्न परियोजनाओं का क्रियान्वयन होना देवास जिले के साथ सरकार के सोतेले व्यवहार को दर्षाता है। यह सवाल इसलिए उठा है कि सूत्रों के अनुसार राजगढ़ जिले में एक पूर्व प्रमुख सचिव जल संसाधन विभाग की सक्रियता के चलते तीन-तीन वृहद परियोजनाएं मूर्त रूप ले चुकी है जिसमें कुंडालिया परियोजना, मोहनपुरा परियोजना तथा पार्वती नदी पर परियोजना निर्माणाधीन होना प्रमुख कारण है। यदि देवास जिले में भी इस तरह किसानों के हित में सक्रियता दिखाई होती तो अब तक वृहद कालिसिंध परियोजना मूर्त रूप ले चुकी होती।
पर्यावरण विभाग दिल्ली में अटकी है अनुमति
वृहद कालिसिंध परियोजना को लेकर पर्यावरण विभाग की स्वीकृति प्रकरण वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत शासन में प्रक्रियाधीन है। इसकी फाईल पर्यावरण विभाग दिल्ली को प्रमुख अभियंता जल ससंाधन विभाग भोपाल के पत्र क्रमांक 34410225/02 दिनांक 28.07.2012 को प्रेषित की गई थी। तब से लेकर आज तक पर्यावरण विभाग दिल्ली में इसकी अनुमति अटकी हुई है। यह बात तब सामने आई जब सीएम हेल्पलाईन में राजपालसिंह चौहान द्वारा शिकायत दर्ज कराई थी और निराकरण की मांग की गई थी। इसके जवाब में सीएम हेल्पलाईन द्वारा जल संसाधन विभाग से जानकारी लेकर लिखित जानकारी षिकायतकर्ता को भेजी गई।
क्षिप्रा जल आवर्धन योजना नही लेती मूर्त रूप तो कैस बुझती देवास की प्यास