अयोध्या मंदिर का मॉडल बनाने वाले कलाकार की कला नागदा में

उज्जैन/नागदा (राकेश शर्मा)। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद अयोध्या में राममंदिर के माडल के आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपुरा का  नाम सुर्खियों में आया है।  मीडिया में बताया जा रहा हैकि आर्किटैक्ट चंद्रकांत सोमपरा ने अयोध्या मंदिर का नक्शा  तैयार किया था। इस कलाकार की एक उत्कृष्ट कलाकृति मप्र के नागदा जिला उज्जैन में है। यहां के बिड़ला मंदिर का निर्माण इसी कलाकार ने किया था। नागदा की धरा  पर इस कलाकार का जीवित संपर्क वषों तक रहा। यहां की जमीन पर बैठकर इस शख्स के निर्देशन में लगभग 8 वर्षो में मंदिर का निर्माण हुआ था।  नागदा की यह कला आज देश भर में परवान चढ़ी हुई है।

यह मंदिर आज समूचे देश में उत्कृष्ट शिल्पकला के रूप मेें बिड़ला मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण फरवरी 1978 में अर्थात 42 वर्ष पहले पूरा हुआ था। लगातार  8 वर्षो तक मंदिर का कार्य चला था। इस खबर के लेखक को इस हस्ती के दर्शन करने का अवसर भी मिला था। 

ग्रेसिम उद्योग के सेवानिवृत 74 वर्षीय इंजीनियर राजेद्र प्रसाद दातरे से जब कैलाश सलोनिया ने इस कलाकार से जुड़ी यादों को ताजा करने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने बताया 1 अप्रैल 1968 में उन्होंने नागदा के तत्कालीन ग्वालियर रेयान अब ग्रेसिम उद्योग में इंजीनियर के पद पर नौकरी ज्वाइन की थी। शिल्पी चंद्रकांत सोमपुरा को नागदा की धरा पर कार्य करते देखा था। उस समय पत्थरों को स्पाट पर ही तराशा जाता था। बल्ली बांधकर कारीगर लोगों को मंदिर बनाते देखा है। पत्थरो  पर नक्काशी भी यहां हुआ करती थी। दातरे ने बताया सोमपूरा जब यहां से कार्यपूरा कर जब  गए तब अपने एक परिवार के सदस्य को उद्योग में नौकरी लगाकर गए थे। शायद वह शख्स भी अब चले गए हैं।


इस प्रकार नागदा आए थे चंद्रकांत सोमपूरा - 

अयोध्या मंदिर के आर्किटेक्ट चंदकांत का नागदा आने के पीछे  कहानी यह है कि  देश के जाने-माने उद्योगपति दिवंगत घनश्यामदास बिड़ला ने चंबल तट स्थित नागदा में पानी की सुविधा को देखते हुए ग्वालियर रेयान के नाम से 1954 में कारखाना डाला था। धार्मिक प्रवृत्ति के बिड़ला का इस शहर से ऐसा रिश्ता हुआ कि 1970के लगभग  एक भव्य कलात्मक मंदिर का निर्माण नागदा में स्थापित करने  का निर्णय लिया। मंदिर बनाने की जिम्मेदारी देश के जाने-माने शिल्पी बलवंत राव को सौपी थी। लेकिन मंदिर निर्माण योजना के मुर्तरूप लेने के  पूर्व ही उनका निधन हो गया। बाद में बलवंत राव के पिता पद्मश्री स्व.  प्रभाशंकर ओधड़भाई सोमपूरा एवं उनके प्रपोत्र चंद्रकांत  के निर्देश में यहां पर मंदिर का निर्माण हुआ।  चंद्रकांत के परदादा देश के ख्यात शिल्पज्ञ थे। भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री से भी सम्मानित किया था। उन्होंने शिल्पकला पर कई पुस्तकें भी लिखी है।

चंद्रकांत की नागदा स्थित कला पर एक नजर -  बिड़लामंदिर नागदा में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा 26 फऱवरी 1978 को तथा शिलारोपण विधि 23 फरवरी 1970 को हुई।  मंदिर निर्माण में कुल पत्थरों का उपयोग 37000 घनफीट जिसमें 26000 घन फ़ीट तीओरी, 11000  घनफिट हिंडौल राजस्थानी पत्थरों का उपयोग किया गया। संगमरमर की बात की जाए तो 28000 घनफीट मकराना एवं राजस्थानी को लगाया गया। मंदिर मंच का क्षेत्रफल 29500 वर्गफीट तथा उचाई 81 फीट  है।

उस काल की तस्वीर आरटीआई स्पेशलिस्ट कैलाश जी सलोनिया  के हाथ लगी

इन दिनों अयोध्या मंदिर के आर्किटैक्ट लगभग 76वर्ष के हो चुके हैं। जब वे नागदा मंदिर बनाने आए थे तब लगभग 45 वर्ष पुराना इतिहास है। उस समय उनके युवाकाल की  उनके दादा प्रभाशंकर सोमपुरा के साथ की तस्वीर आर टी आई स्पेशलिस्ट कैलाश जी सलोनिया नागदा को हाथ लगी है। यह सब पूरी जानकारी नागदा के गणमान्य वरिष्ठ आर टी आई स्पेशलिस्ट ने बताई।